Monday 17 December 2012

Home is where the heart is...!!!!

अपने नज़रों से देखो
तोह सिर्फ चार दीवार है
मेरे रूह में झांकों
तोह यादों का भण्डार है ।

ये ही वोह फर्श है
जिसपे मैंने चलना सीखा
ये वही छत है
जिसके साए में मैंने पहला सपना देखा ।

यहाँ की हवाओं में
मेरे आसुओं की मेहेक है
यहाँ की दीवारों में
मेरे हसी की चेहेक है ।

इसी की छत्रछाया में
मैंने अपना बचपन बिताया
यहाँ से जाने के ख़याल में
मेरा दिल भर आया ।

यहाँ से जाना मेरी मर्ज़ी नहीं
मेरी मजबूरी का किस्सा है
क्यूंकि ये सिर्फ मेरा घर नहीं
बल्कि मेरे रूह का हिस्सा है !!!

Note: The title is in English because I felt there was no better title for the poem and translating it in Hindi was not apt.


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