अपने नज़रों से देखो
तोह सिर्फ चार दीवार है
मेरे रूह में झांकों
तोह यादों का भण्डार है ।
ये ही वोह फर्श है
जिसपे मैंने चलना सीखा
ये वही छत है
जिसके साए में मैंने पहला सपना देखा ।
यहाँ की हवाओं में
मेरे आसुओं की मेहेक है
यहाँ की दीवारों में
मेरे हसी की चेहेक है ।
इसी की छत्रछाया में
मैंने अपना बचपन बिताया
यहाँ से जाने के ख़याल में
मेरा दिल भर आया ।
यहाँ से जाना मेरी मर्ज़ी नहीं
मेरी मजबूरी का किस्सा है
क्यूंकि ये सिर्फ मेरा घर नहीं
बल्कि मेरे रूह का हिस्सा है !!!
Note: The title is in English because I felt there was no better title for the poem and translating it in Hindi was not apt.
तोह सिर्फ चार दीवार है
मेरे रूह में झांकों
तोह यादों का भण्डार है ।
ये ही वोह फर्श है
जिसपे मैंने चलना सीखा
ये वही छत है
जिसके साए में मैंने पहला सपना देखा ।
यहाँ की हवाओं में
मेरे आसुओं की मेहेक है
यहाँ की दीवारों में
मेरे हसी की चेहेक है ।
इसी की छत्रछाया में
मैंने अपना बचपन बिताया
यहाँ से जाने के ख़याल में
मेरा दिल भर आया ।
यहाँ से जाना मेरी मर्ज़ी नहीं
मेरी मजबूरी का किस्सा है
क्यूंकि ये सिर्फ मेरा घर नहीं
बल्कि मेरे रूह का हिस्सा है !!!
Note: The title is in English because I felt there was no better title for the poem and translating it in Hindi was not apt.
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