Sunday 8 July 2012

कैसी ये दुनिया की रीत है !!!!

कैसी ये दुनिया की रीत है
लाखों की हार और बस एक ही की जीत है
आदमी दीखता है कुछ , पर वैसा होता नहीं
जैसा होता है वोह , वैसा दीखता नहीं
उसको विश्वाश है अन्धविश्वाशों पे
पर विश्वाश नहीं है उसे अपने यारों पे
आदमी मोह-माया के लिए व्याकुल है
जिस पर मर-मित्राहे नामाकुल है
गरीब जुज रहे पैसे कमाने में
आमिर लगे है उन्हें उडाने में
ये देख मन हो रहा भयभीत है
कैसी ये दुनिया की रीत है !!!!

Wednesday 4 July 2012

आज़ादी

बेबसी  के  आलम  से  जुज़  रहा  हूँ
बिन  पानी  के  मछली  सा  तड़प  रहा  हूँ ,
पैरों  में  झंजीरें  अब  सही  जाएँ  ना 
कैद  में  झिंदगी  अब  जी  जायें  ना ,
आज़ादी  को  अब  गले  लगाना  है 
हर  मंझिल  को  अब  पाना  है ,
बन  पंछी  आसमान  में  उड़ना  है 
बिछड़ों  से  अब  फिर  जुड़ना  है ,
पार  करनी  है  अब  हर  चुनौती 
जलानी  है  हर  अन्धेरें  में  ज्योति 
सपनों  को  पंख  लगाना  है 
पिछली  बातों  को  भुलाना  है 
पिंजरे  से  अब  बाहर  आना  है 
आज़ादी  को  अब  गले  लगाना  है !!!

Sunday 1 July 2012

ऐसे एक दुनिया की सोच है मेरी !!

मेरे  ख्वाबों  के  दास्तानों  का  बयान  है
बिना  तलवार  के  खाली  मयान  है
न  तलवार  न  बन्दूक  न  जंग  न  चोरी 
ऐसे  एक  दुनिया  की  सोच  है  मेरी
इस  सोच  को  सच  बनाना  है
इंसानियत  का  संदेसा  फैलाना  है
मैं  से  पहले  आप  ज़बान  पे  लाना  है
स्वार्थ  नामी  कीड़े  को  काट  खाना  है
दुसरो  के  दुःख  को  अपना  समजना  है
ब्रस्थाचार  का  नामुनिशन  मिटाना  है
ये  मकसत  है  मुश्किल ,  नामुमकिन  नहीं
हिम्मत  है  ज़रूरी ,  ताकत  नहीं
चलो  कदम  बढ़ाये ,  मंजिल  अब  दूर  नहीं
आओ  दिखादे  हम  मजबूर  नहीं
उठो!  चलो!  अब  न  करो  देरी
ऐसे  एक  दुनिया  की  सोच  है  मेरी !!!