बेबसी के आलम से जुज़ रहा हूँ
बिन पानी के मछली सा तड़प रहा हूँ ,
पैरों में झंजीरें अब सही जाएँ ना
कैद में झिंदगी अब जी जायें ना ,
आज़ादी को अब गले लगाना है
हर मंझिल को अब पाना है ,
बन पंछी आसमान में उड़ना है
बिछड़ों से अब फिर जुड़ना है ,
पार करनी है अब हर चुनौती
जलानी है हर अन्धेरें में ज्योति
सपनों को पंख लगाना है
पिछली बातों को भुलाना है
पिंजरे से अब बाहर आना है
आज़ादी को अब गले लगाना है !!!
No comments:
Post a Comment