Sunday 8 July 2012

कैसी ये दुनिया की रीत है !!!!

कैसी ये दुनिया की रीत है
लाखों की हार और बस एक ही की जीत है
आदमी दीखता है कुछ , पर वैसा होता नहीं
जैसा होता है वोह , वैसा दीखता नहीं
उसको विश्वाश है अन्धविश्वाशों पे
पर विश्वाश नहीं है उसे अपने यारों पे
आदमी मोह-माया के लिए व्याकुल है
जिस पर मर-मित्राहे नामाकुल है
गरीब जुज रहे पैसे कमाने में
आमिर लगे है उन्हें उडाने में
ये देख मन हो रहा भयभीत है
कैसी ये दुनिया की रीत है !!!!

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