Friday 21 February 2014

नई ज़िन्दगी की आस !!!

मैं चलता रहा वहाँ
ये रास्ते  ले चली मुझे जहाँ ,
ना सोचा है की मंजिल मिलेगी भी
रास्ता थम जायेगा जहाँ ।

फिर भी चल रहा हूँ मैं
तलाशते हुए खुद को।
इन रास्तों की गोद में
भुलाता हर तकलीफ को।

ऊघ  चूका हूँ मैं
अपनी घिसी पिटी ज़िन्दगी से,
अप्ने शेहेर से, गली चौराहे से,
घर के चार दीवारों के बंदगी से।

पीछें छोड़ के वोह दुनिया
अब तो मुझे बस उड़ना है।
हर देश, हर शेहेर, हर गली,
सब को अपना बनाना है।

नए लोग, नए रिश्ते,
होगी एक नई शुरुवात।
फिर भी दिल में आस होगी
काश होता जिग्री दोस्तों का साथ।


No comments:

Post a Comment